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क्य��� हिंदी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धा���ा में लाई जा सकती है? अगर हां, तो किस प्रकार? अगर नहीं, तो क्यों नहीं?……contest

kavita
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लार्ड मैकाले ने कहा था की जब तक संस्कृत����� और भाषा के स्तर पर गुलाम नहीं बनाया जाएगा, भ���रतवर्ष को हमेशा के लिए या पूरी तरह, गुल���म बनाना संभव ���हीं होगा��� प्रोत्���ाहन स्व���ुप उन्होंने अंग्रेजी के जानकार लोगों को ऊंचे पद पर बैठाया | और आजतक हम इस गुलामी से अपने आप छुड़ा नहीं पाए | यही कारण है हिंदी को सम्मानजनक भाष��� के रूप में ���्���ीकारा नहीं गया |
ह���न्द��� जैसा की नाम से ही ज्ञात होता है हिन्दुस्तान म���ं र���ने वाल��� नि������सियों ���ी प�����चा��� ������। इससे इसके अस्ति���्व को नकारा नहीं जा सकता है। भारत बहु भाषीय देश हैं। इन सबके बीच हिन्दी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा ���ै��� विश्व में तीसरा स्थान प्राप्त है। आज़ादी के समय में इसकी सशक्त भूमिका थी। इसी भाषा के कारण पूरा देश एक धागे में पिरोया गया था। इसने ही देशवासियों को जोड़ा और आज़ादी की मशाल को जलाया थ���। भारत जैसे देश में जहाँ ���र कदम पर भाषा बदल जाती है हिन्दी वहाँ पर संबंध बनाने में सहायक है।
कभी जा���े माने पत���रक���र श्री खुशवंत सिंह ने हिं���ी को ‘ गरीब भाषा’ कहा था | पर आज ये कहना पूरी त���ह से गलत ह���गा क��� हिंदी क����� महत्व घट ग���ा है | ���िश्व क��� सबसे अधिक जन���ँख्या वाले देश का राष्ट्रभाषा यदि हिंदी है तो अपन��� आप ही हिंदी सबसे प्रचलित भाषाओँ की श्रेण��� में आ जाती है | ऐसे मे��� ये शंका ही क्षीण पद जा���ा है की क्या हिंदी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धारा में लाई जा सकती है?

अनुवाद और संवाद एक ऐसा सशक्त म���ध्यम है जिसके तहत हम हिदी को शीर्ष स्थान पर ले जा सकते है | विदेशी साहित्य के अनुवाद से विदेशियो��� में हिंदी के प्रति रूचि बढ़े���ी और ���स ���रह उनसे संवाद स���था���ित कर हिंदी को अंत���्राष्ट्�����ीय स्तर ���र लाना आसान हो जाएगा और अब तो आभासी दुनिय��� म�����ं हिंदी लिखना व पढन��� दोनों आसान हो गया ���ै | दे���नागरी लिपि को कम्पूटर क��� लिए सर्वाधिक उपयुक्त ���ाषा मान��� जाने लगा है | ���ब हिंदी की दुनिया केवल किता���ों में सिमटकर नहीं रह गय��� है | गर कही��� ���मी ������ तो सोच को ���दलने की | जबतक हम अपने राष्ट्र भाषा के ���्र���ो��� पर गौरवान्वित नहीं महसूस करेंगे हन्दी को मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास वृथा है |

आज के बाजारवाद युग में केवल आदर्शो��� पर चलकर कुछ भी सम्भव नहीं | अतः हिंदी को जनभाषा �����ी नहीं अंतर्राष्ट्रीय तौर पर विस्तार देना ���रम आवश्यक हो गय��� ह��� | हमारी युवा पीढ़ी को हिन्���ी ���ोलना और ���िन�����दी बोलने वाले लोग ���आउटडेटेड’ लगने लगे ���ैं। कारण दे��� के बाहर इस भाषा का कोई ���िस्तार नहीं ह��� जबकि हिंदी में अंत���्राष्ट्रीय ���ाषा बनने के सारे गुण मौजूद है | हम���ं हिंदी को उपेक���षित भाषा व हिंदी भाष���यों को ‘आउटडेटेड’ न ���हा ���ाय इसके लिए हर सम्भव प्रयास करना होगा | हिंदी जैसे वैज्ञानिक भा���ा को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर लाने की देर है हिंदी अपने आप ही मुख्य धारा में बहने लगेगी |
स्वतंत्रता संग्राम का ए��� दौर वो भी था जब हिन्दी भा���ा में ही द���शभक्ति की अलख जगाई गई थी | आ��� भी देश के बड़े बड़े आन���दोल���ों मे��� हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया ज�����ता ���ै |

ये तो एक भ्रान्ति फैलाई जाती है की हि���्दुस्तान क��� ल���ग ही हिन्दी से दूरी र���ने लगे हैं।अ���र सरकार वोटों की राजनीति छोड़ दे �����ो ���ूरे दे��� भर में हिंदी का वर्चस्व आज भी है और कल भी रहेगा |निज भाषा उन्नति के लिए जो कुछ भी हम करेंगे उससे हमारी भी उन्न���ि होगी । हिंदी दुनिया की सबसे बड़ भाषा है, इसकी उन्नति के साथ ही हमारी प्रगति जुड़ी है । आइए हम सब मिल कर ���िंदी के विकास के लिए कार्य करें । साहित���यकार भारतें���ु हर���श्चंद ज��� ने कह��� था ….

“निजु भ���षा उन्नत��� अहे ,सब उन्नति के मूल
बिनु निजु भाषा ज्ञ���न के , �����िटे न हिय के शूल”

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