kavita
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मन के तम को दूर ���र
गम को मन से परे कर
हृदय से हृदय मिला ले
आज मित्रता के गीत गा ले !
अग्निशापित ���ृदय से
राग-द्व���ष के कलंक से
खुद को तू स्वतंत्र कर
मित्रतादार्श स्थापित कर !
���े����� मन का मिटा ���े
���ेह-नश्वर जान ले
अश्रु बूँद न व्यर्थ कर
मित्रता दृढ़ता से धर !
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