kavita
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प्रिये तुम बस मेरी हो
दुनिया से क्या डरना मुझको
शाप-शब्दों का परवाह नहीं अब
तुम अब नहीं अकेली हो
प्रिये तुम अब मेरी हो
दिनकर रजनीकर में हम तुम
जग में अभिसार का संशय
कुछ भी कहने दो लोगो को
तुम अब मेरी सनेही हो
प्रिये तुम अब मेरी हो
अमृत भी भला क्या मोहे
अधर-सुधा जो अमृत घोले
विषपान भी कर लूं गर कह दो
अपने संग जी लेने दो
प्रिये तुम अब मेरी हो
तुम्हारा स्पर्श संजीवन जैसा
रिश्तों का गठबंधन ऐसा
अमरप्रेम की इस जीवंत कथा को
जग को भी कह लेने दो
प्रिये तुम बस मेरी हो
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