kavita
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मेरे रीतापन को लेकर
एकाकी जीवन है मेरा
जैसे बिना कुहक चिड़ियों की
निस्तब्ध वन है सारा
उठ जाती हूँ रातो को सुनकर
अकस्मात्, ये ध्वनि है क्या
अरे! ये तो जानी पहचानी सी
रूदन है मेरा
पक्की दीवारों से घिरी
इन कमरों की गुंजन को
मन की कच्ची दीवारें भी
सुनता नहीं इस धड़कन को
डायरी के पन्ने सारे
भर गए तेरे यादों से
नीदों से तो टूटा नाता
जुड़ गया नाता तारों से
चंद सवाल रह जाते मन में
कब तक इस रीता मन को
लेकर चलती रहूँ मै साथ
दिन ज़िन्दगी के कम है जो
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