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चाँद फिर…..

kavita
kavita
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चाँद फिर चुपके से निकला
धीरे-धीरे बढती आभा
फूल मधुवन में फैले खुशबू
गीत कोई गए आ ssss

मन वीणा के तार बज उठे
स्वर में है जादू लहराया
पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण
चहूँ ओर से क्या स्वर आया

दो हृदयों का मिलन देखकर
प्राण-श्वास का प्रणय देखकर
अंतर्मन में आस जग उठी
चाँद डूबा कब सूरज आया

चिड़ियों की कलरव गूँज उठी
कलियाँ भी फिर से महक उठी
उषा के मृदु किरणों के संग
नभ पर सूरज फिर उग आया

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