kavita
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ईमान क्यों है गड़बड़ाया
तेरी सूरत देखकर
किताब में रक्खे फूल भी
ताजगी दे गयी महककर
दिल-ए-दास्ताँ जो कभी
बंद थी किताब में
शोखियाँ और बांकपन सब
छुप गया था नकाब में
फिर क्यों ले जाए हमें
बहारों के शबाब में
सुर फिर से क्यों बजे
सुरीली रबाब में
क्यों फिर से ज़िन्दगी के
कैनवस में रंग दिख गए
क्यों फिर से सूखे गुलाब
किताबों के बीच महक गये
ईमान फिर से गड़बड़ाया
तेरी सूरत देखकर
फिर से क्यों सूखे फूल
ताजगी दे गयी महककर
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