kavita
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तुम्हारी साँसों की खुशबू से
महका मधुमास इस आँगन में
पहले कभी न महका था यूं
हवा इस गीले सावन में
फूलों में भी ये मादकता
दिखी न कभी इस बगिया में
मन भी कभी न भटका ऐसे
फूलों वाली मौसम में
सूनी सी इस जीवन में जो
था रीतापन खारापन
मौसम परिवर्तन ने जैसे
अनायास भर दिया यौवन
अरुणोदय चंद्रोदय अब तो
भाता है खूब इस मन को
आसमान की नीलिमा भी
रंगीन लगता है अब तो
संध्या की इस लालिमा से
भर दूं मांग …मेरी हो तुम
शायद हवा बहती हुई
ये कथा कह दे सुन लेना तुम
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