kavita
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धीरे धीरे रूहानी रिश्तो को गहराने दो
शाख से जुड़े कच्चे लम्हों को पक जाने दो
परिंदों का उड़ना ही था की पर काट दिए
चिंगारी को ज़रा सा उड़ने की खुमारी दे दो
लम्हे गिरेंगे शाख से जब पक जायेंगे ये कच्चे पल
संभालना है मुझे तारीखों में बसे पके हुए कल
फिर ये कैसा ठहराव है इस वीरान जिंदगानी में
इन प्यार के कतरों को दरियाई गहराई दे दो
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