kavita
- 139 Posts
- 702 Comments
तू है वक़्त गुज़रा हुआ
मुरझाया फूल किताबों में रखा
तुझे न याद करूँ एक पल से ज्यादा
कि दिल में तू नहीं अब कोई और है
तुम से खिला करती थी जो बगिया
इंतज़ार में पल गिनता था ये छलिया
अब उन लम्हों में खुशबू बिखेरा जिसने
वो अब तुम नहीं कोई और है
ख़्वाबों में, नींदों में, ख्यालों में नहीं तुम
राह पर, मोड़ पर , धडकन में नहीं तुम
अब रात गुज़रती है जिनके अरमान लिए
वो अरमान नहीं तुम ..कोई और है
वो जो है मेरी आज की ख्वाहिश
उसका सदका उतार दूं न रहे खलिश
बिछड़ने का डंक डसा था जिसने
वो कोई और नहीं वो तू ही है
Read Comments