kavita
- 139 Posts
- 702 Comments
गूंजे कोयल की कूक से
जंगल में मीठी तान
पवन चले मंद मंद
गाये दादुर गान ,
आम्र मंजरी के महक से
महके वन-वनांतर
पथिक का प्यास बुझाए
नदी बहे देश-देशांतर
पक्षियों के कलरव से
गूंजे धरती आसमान
पुष्प-पुष्प सुगंध से
महकाए ये जहान
बेशक ये बयार भी
हृदयों को मिलाये
पत्तों के झुरमुट से
चाँद भी झिलमिलाये
Read Comments