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कोयल की कूक

kavita
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गूंजे कोयल की कूक से
जंगल में मीठी तान
पवन चले मंद मंद
गाये दादुर गान ,

आम्र मंजरी के महक से
महके वन-वनांतर
पथिक का प्यास बुझाए
नदी बहे देश-देशांतर

पक्षियों के कलरव से
गूंजे धरती आसमान
पुष्प-पुष्प सुगंध से
महकाए ये जहान

बेशक ये बयार भी
हृदयों को मिलाये
पत्तों के झुरमुट से
चाँद भी झिलमिलाये

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