kavita
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नदी के पार कोई गाता गीत
उस स्वर में बसा है मन का मीत
नदी की लहरों खेतों से उठकर
आती ध्वनि मन लेता जीत
होगा इस पार जो लेगा सुन
इस देहाती गानों का उधेड़-बुन
इन एकाकी गानों को सुनकर
मरकर भी जी लेगा पुन-पुन
भानु-चन्द्र का है आलिंगन
प्रकाश से भरा है लालिमांगन
इन गीतों ने छेड़ा है फिर से
राग-अनुराग का आलापन
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