kavita
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चलो न चले
पकडे डूबते सूरज को
जाने न दे उसे
रोक ले क्षितिज में
चलो न चले
बहते पवन के साथ
चलते चले हम भी
कहीं कोई पुरवाई चले
चलो न चले
चाँद की धरातल पर
सूत कातती है वहाँ
एक अनजानी सी बुढिया
रोक ले उसे
मत कातो ये धागे
ये धागे
रिश्ते नहीं बुनते
चलो न चले
उस जहां में जहां
न सूरज डूबे
न ही कोई रिश्ता टूटे
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