kavita
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तनहा ज़िन्दगी में गुजर बसर करते है
काफिले के साथ भी तनहा-तनहा चलते है
दिन में भीड़ करती है मुझे परेशान
रात को तन्हाई में भी सोया नहीं करते है
परछाईं को देख मैं हूँ इस कदर हैरां
गुजरी उम्र …हम अकेले चला करते है
रात का सन्नाटा आवाज़ देती है मुझे
जाऊं कैसे हम तो तन्हाई में डूबे रहते है
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