Menu
blogid : 2387 postid : 246

घोर घनघटा………

kavita
kavita
  • 139 Posts
  • 702 Comments

डूबा दिन ढल गयी शाम ,रोक न पाऊँ मैं
आकाश सज गए तारों से ,कदम बढाऊँ मै

घोर घनघटा नहीं चांदनी , न रोशनी तारों की
उतावला मन बिखरा पल , उठे मन में विचारें भी

न हो ये शाम रात बदनाम , दिल बरबस तनहा
मन बेचैन…सगरी रैन कब होवे सुबहा

जाने क्या दिन का राज़ , उत्फुल्ल है मन
रोशन है जग सारा ,हुआ मन रोशन

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh