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हे कवि बजाओ …………

kavita
kavita
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हे कवी बजाओ मन वीणा
छेड़ो तुम जीवन के तान
शब्द शिखर पर आसीन हो तुम
छेड़ो तुम जन-जन का गान

गीत छेड़ो स्वतन्त्रता के
झूठ छल-कपट का हो अवसान
सत्य अहिंसा ईमान का
जग में करना है उत्थान

मौन रह गए गर तुम कविवर
छेड़ेगा कौन सत्य अभियान
कलम को हथियार बनाकर
करो जन-जन का आहवान

उठो -जागो लड़ो-मरो
करो देश के लिए बलिदान
कवि तुम चुप न रहो -कह दो
सत्य राह हो सबका ध्यान

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