kavita
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कदम क्यों रुक से गए
तेरे दामन में आकर
साँसें क्यों थम सी गयी
तुम्हे याद-याद कर
नींद भी क्यों न आये
मुझे आधी रात तलक
उनींदी रातें गुजारूं मै
इंतज़ार में कब तक
मेरी हस्ती मिट जायेगी
तुम्हे याद करते
बेजान सी ज़िन्दगी है मेरी
सपनो में तुम्हे देखते
यूं ही समय कट जायेगी
यादों के पन्ने पलटते
अक्स धुंधली पड़ जायेगी
रिश्तों के सिलवटों को झटकते
बस कह दो इतना कि
तुम अब भी हो मेरे
मन के दरख्तों में बसे है
मेरे ही चेहरे
तुम्हे छूकर जाती है
जो हवा मुझसे होकर
उन हवाओं में अब भी
तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा
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