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चादर पर पड़े ………

kavita
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चादर पर पड़े सिलवटों की भी जुबां होती है
कभी प्यार तो कभी ग़म की कहानी कहती है

रेत गीली कर जाती है जो तूफ़ानी समंदर
वो समुंदर भी आंसुओं से ही नमकीन होती है

मिटटी की सोंधी खुशबू ने जिन फिज़ाओं को महकाया है
उन फिज़ाओं में ही पतझड़ की कहानी होती है

पानी के बुलबुले को भूल से मुहब्बत मत समझो
इन बुलबुलों में बेवफाई की दास्ताँ होती है

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