kavita
- 139 Posts
- 702 Comments
एक नारी के मन की –
व्यथा हो तुम
धूलिसात अभिमान का
प्रतीक हो तुम
रिश्तों में छली गयी
नारी हो तुम
पर निष्ठुर भाग्य को धता
देती हो तुम
अंतस की पीड़ा का
आख्यान हो तुम
द्युतक्रीडा के परिणाम का
व्याख्यान हो तुम
भक्ति की पराकाष्ठा को
छूती हो तुम
एक अबला की सबल –
गाथा हो तुम
मर्यादित रिश्तों की
भाषा हो तुम
एक सुलझी हुई नारी की
पहचान हो तुम
Read Comments