kavita
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देखो काली घटा है घिर आया
नाव किनारे को है चल पडा
बादल है गरजा तूफ़ान भी लरजा
मेरे साजन तुम हो कहाँ ?
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सन-सन बहे ये पागल पवन
बिजली से आलोकित है गगन
क्या करूँ घर में मैं सजन
जिया धडके कभी रुके धड़कन
घन बरसे सैलाब है बहे
मेरे साजन तुम हो कहाँ ?
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तूफ़ान उत्ताल नाव भी डोले
ये घरबार तूफ़ान ले उड़े
अब की बार न जाने दूं सजन
है मेरा-तुम्हारा अटूट बंधन
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घनघोर अँधेरा द्वार है खुला
ऐसे में सजन तुम
आखिर हो कहाँ ?
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