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मन कोयला बन …..

kavita
kavita
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मन कोयला बन जल राख हुई
धूआं उठा जब इस दिल  से
नाम तेरा ही लिखा फिर भी
हवा में, बड़े जतन से


तेरी याद मन के कोने से
रह-रह कर दिल को भर जाए
जिन आँखों में बसते थे तुम
उन आँखों को रुला जाए


जाने क्यों दिल की बस्ती में
है आग लगी ,दिल जाने ना,
पूछ न हाल इस दिलजले का
जलता जाए बुझ पाए ना

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