kavita
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रैन जलती रही
ख्वाब पलती रही
आंसूओ के सैलाब से
नैन सिलती रही
सपने पले थे जो
पलकों पर ठहर सी गयी
तारे भी आसमा पर ही
जाने क्यों ठिठुर सी गयी
दर्द भरी लोरिया भी
आँखों को सुला न पाया
सुबह का सूरज भी
दुनिया सजा न पाया
बारिश की बूंदे भी
इस मन को न भर पाया
ये प्रेम की तड़पन है
न ये जल पाया न बुझ पाया
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