kavita
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कभी दिन में देखा है चाँद
फीका सा
एक बुझा हुआ दीपक
सरीखा सा
काश इन परिंदों सा
उड़ पाऊँ
चन्दा को धरती पर
ले आऊँ
मल-मल कर चमकाऊँ
बुझे तन को
खिली चांदनी से पावन
करे जग को
जाने क्यों सोचे ये
पागल मन
रिश्ता है चन्दा से
शायद कोई पुरातन
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