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जब टूटा ये

kavita
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जब टूटा ये मिलन मेला

सोचा रुक न पाएगा

ये आंसुओं का खेला

हर दिन इस राह पर

कितने  फूल माला से

जाता है झर

न जाने कब आया

ये विस्मरण का बेला

दिनों-दिन कठोर हुआ

ये वक्ष-स्थल , सोचा था –

बहेगा नहीं ये अश्रु जल

अचानक देख तुझे राह में

रुदन ये निकला जाए न थमे ,

विस्मरण के तले तले था

अश्रुजल का खेला


गुरुदेव की रचना से अनुदित

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