kavita
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मेरे इस रेगिस्तान मन में
बूँद प्यार का गर टपक जाए
रेत गीली हो जाय
दिल का दामन भर जाय
जन्मों से प्यासे इस मन को
प्यार का जो सौगात मिला
मन पंछी बन उड़ जाए
रहे न जीवन से गिला
जाने क्यों मन भटका जाय
ढूंढे किसे ये मन बंजारा
है आवारा बादल की तलाश
पाकर मन कहे ‘मै हारा’
इतना प्यार उड़ेलूँ उसका ..
आवारापन संभल जाए
वो बूँद बन जाए बादल का
और इस सूखे मन में टपक जाए
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