kavita
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ये व्याकुल वकुल के फूलों पर
भ्रमर मरता पथ घूम-घूम कर
आसमान में ये कैसी सुगबुगाहट
वायू मे भी एक फुसफुसाहट
ये वनांचल भी पुलकित होकर झूमे
ये भ्रमर भी पथ भूलकर घूमे
ये मन वेदना सुमधुर होकर
खुश है आज भुवन में बहकर
वंशी में है तानपुरी सी माया
ये कौन है जो मेरे मन को चुराया
ये निखिल विश्व भी मरे घूम-घूम कर
और मै मरुँ विरह सागर के तट पर
tagore ji ki kavita se anudit
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