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मन की बात

kavita
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रे मन तेरी ये दुस्साहस जो तूने प्रेम रचा डाला,
तिल-तिल जलती इस मन को अब
दे छांव प्यार की मिटे ज्वाला II

मन की माने या दुनिया की
जो बार बार ये बतलाती है ,
की प्यार आग का दरिया है
डूब के ही हमें पार जाना हैii

मन के कोने से आस जगी
नहीं डरने की ये बात नहीं ,
प्यार ही तो है नफरत तो नहीं
दुनिया की शाश्वत गाथा यही II

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