kavita
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मै नदी हूँ …………
पहाड़ो से निकली
नदों से मिलती
कठिन धरातल पर
उफनती उछलती
प्रवाह तरंगिनी हूँ
परवाह किसे है
ले चलती किसे मै
रेट हो या मिटटी
न छोडूँ उसे मै
तरल प्रवाहिनी हूँ
राह बनाती
सागर जा मिलती
पर्वत से अमृत को
लेकर मै चलती
न आदि न अंत
शिव जटा से प्रवाहित
जाह्नवी हूँ
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