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हमने तो आलने में

kavita
kavita
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हमने तो आलने में दिए है जलाए
ये फिर आँखों से धुआं क्यों उठा
हमने तो बागों में फूल है खिलाये
ये फिर फूलों का रंग क्यों उड़ा
जागते रहे हम रात से सुबह तलक
फिर भी नींद का खुमार क्यों न चढ़ा
रैन तो रात भर जलता रहा
पर नैनो ने रात भर ख्वाब न बुना
हम तो तारों पर है चलते रहे
चुभते हुए पैरों को सहते रहे
अपने इन हाथों से सपनो को बुना
फिर भी जामा ख्वाब का पहना न पाया
जिन्दगी गर्दिश में बने रहेंगे
ऐसे तो हमने दाने नहीं बोये
पता है जिन्दगी संवर जायेगी
ऐसा कुछ हमने यथार्थ में है पिरोया

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